नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए का तीन दिन पहले तक 5 मुख्यमंत्री विरोध कर रहे थे, लेकिन अब 3 और राज्य सरकारों ने साफ कर दिया है कि वे इसे लागू नहीं होने देंगी। पहले बंगाल, राजस्थान, केरल, पुड्डुचेरी और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने ऐसे बयान दिए थे। अब मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ की सरकार ने भी कह दिया है कि इस कानून को लागू करने का सवाल नहीं उठता। इन 8 राज्यों में देश की 35% अाबादी रहती है। वहीं, 3 और राज्य सरकारें ऐसी हैं जो सीएए के विरोध में तो हैं, लेकिन इस कानून को लागू होने देंगी या नहीं, इस पर उनका रुख साफ नहीं है। इन राज्यों को भी जोड़ दिया जाए तो 42% आबादी वाली 11 राज्य सरकारें अब सीएए का विरोध कर रही हैं।
सोमवार को दिल्ली के राजघाट पर कांग्रेस के एकता के लिए सत्याग्रह कार्यक्रम में मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ ने कहा कि सीएए और एनआरसी को लागू नहीं होने दिया जाएगा। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी यही बात दोहराई। छत्तीसगढ़ के मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी कहा कि उनके राज्य में भी सीएए और एनआरसी लागू नहीं होगा। महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बालासाहेब थोरात भी कह चुके हैं कि हम अपने राज्य में इन दोनों योजनाओं को लागू नहीं होने देंगे।
8 राज्य सरकारों ने कहा- नागरिकता कानून लागू नहीं होने देंगे
| राज्य | आबादी | भूभाग | किसकी सरकार |
| बंगाल | 7.3% | 2.8% | ममता बनर्जी, तृणमूल |
| महाराष्ट्र | 9.3% | 9.3% | उद्धव ठाकरे, शिवसेना |
| मध्यप्रदेश | 6% | 9.3% | कमलनाथ, कांग्रेस |
| राजस्थान | 5.7% | 10% | अशोक गहलोत, कांग्रेस |
| केरल | 2.6% | 1.1% | पिनरई विजयन, माकपा |
| पंजाब | 2.2% | 1.5% | अमरिंदर सिंह, कांग्रेस |
| छत्तीसगढ़ | 2% | 4.11% | भूपेश बघेल, कांग्रेस |
| पुड्डुचेरी | 0.1% | 0.1% | नारायणसामी, कांग्रेस |
| कुल | 35% | 38% |
नागरिकता कानून पर बाकी राज्यों का रुख
दिल्ली के मुख्यमंत्री भी नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने साफ तौर पर ये नहीं कहा है कि वे इसे लागू नहीं होने देंगे। मप्र और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कहा है कि हमारा रुख वही होगा, जो कांग्रेस का होगा। तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस ने संसद में इस बिल का विरोध किया था, लेकिन इसे लागू करने को लेकर उसका रुख साफ नहीं है। इनके अलावा गैर-भाजपा शासन वाले तमिलनाडु, आंध्र और ओडिशा की सरकारों ने नागरिकता संशोधन विधेयक का संसद में समर्थन किया था।
विरोध कर रही 3 सरकारों ने भी इसे लागू नहीं किया तो कुल 42% आबादी वाले राज्यों में सीएए लागू नहीं होगा
| राज्य | आबादी | भूभाग | किसकी सरकार |
| झारखंड | 2.7% | 2.4% | हेमंत सोरेन, झामुमो (शपथ लेना बाकी) |
| तेलंगाना | 2.9% | 3.4% | केसीआर, टीआरएस |
| दिल्ली | 1.3% | 0.04% | अरविंद केजरीवाल, आप |
| बाकी राज्य | 35% | 38% | |
| कुल | 42% | 44.05% |
आधी आबादी वाले राज्यों की सरकारें एनआरसी लागू नहीं करेंगी
दूसरे मुद्दे एनआरसी की बात करें तो इस योजना का खाका तैयार होने से पहले ही 10 मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि वे इसे अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगे। इन मुख्यमंत्रियों की 51% आबादी वाले राज्यों में सरकार है।
51% आबादी वाले 10 राज्यों की सरकारों ने कहा- नेशनल रजिस्टर भी लागू नहीं होने देंगे
| राज्य | आबादी | भूभाग | किसकी सरकार |
| बिहार | 8.3% | 2.9% | नीतीश कुमार, जदयू (एनडीए में शामिल) |
| महाराष्ट्र | 9.3% | 9.3% | उद्धव ठाकरे, शिवसेना |
| बंगाल | 7.3% | 2.8% | ममता बनर्जी, तृणमूल |
| मध्यप्रदेश | 6% | 9.3% | कमलनाथ, कांग्रेस |
| राजस्थान | 5.7% | 10% | अशोक गहलोत, कांग्रेस |
| आंध्र | 3.9% | 5% | जगन रेड्डी, वाईएसआर कांग्रेस |
| ओडिशा | 3.3% | 4.7% | नवीन पटनायक, बीजद |
| केरल | 2.6% | 1.1% | पिनरई विजयन, माकपा |
| पंजाब | 2.2% | 1.5% | अमरिंदर सिंह, कांग्रेस |
| छत्तीसगढ़ | 2% | 4.1% | भूपेश बघेल, कांग्रेस |
| कुल | 51% | 51% |
अन्य राज्यों का रुख
- पुड्डुचेरी में कांग्रेस की सरकार है। यह केंद्र शासित प्रदेश है। यहां की कांग्रेस सरकार ने नागरिकता कानून का विरोध तो किया है, लेकिन एनआरसी आने की स्थिति में उसे लागू होने देंगे या नहीं, इस पर रुख साफ नहीं किया है।
- दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एनआरसी पर सिर्फ यही तंज कसा था कि दिल्ली में इसके लागू होते ही भाजपा नेता मनोज तिवारी को राज्य छोड़कर जाना पड़ जाएगा।
- तेलंगाना और तमिलनाडु की सरकार ने भी नेशनल रजिस्टर के मुद्दे पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
- झारखंड के अगले मुख्यमंत्री बनने जा रहे हेमंत सोरेन ने नेशनल रजिस्टर का विरोध तो किया है, लेकिन कहा है कि वे इससे जुड़े दस्तावेज देखने के बाद ही फैसला लेंगे।
एनआरसी यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन
- एनआरसी भारत के सभी नागरिकों के लिए होगा। यह सिटीजन जिस्टर होगा, जिसमें देश के हर नागरिक को अपना नाम दर्ज कराना होगा। सरकार का दावा है कि यह आधार कार्ड या किसी दूसरे पहचान पत्र जैसा ही होगा। नागरिकता के रजिस्टर में नाम दर्ज कराने के लिए आपको अपना कोई भी पहचान पत्र या अन्य दस्तावेज देना होगा, जैसा कि आप आधार कार्ड या मतदाता सूची के लिए देते हैं।
- सरकार ने नागरिकता कानून को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद 13 सवाल-जवाब जारी किए थे। इसमें से 10 सवाल एनआरसी पर थे। इसमें सरकार ने कहा है कि देश के लिए एनआरसी के नियम और प्रक्रिया तय होने अभी बाकी हैं। असम में जो प्रक्रिया चल रही है, वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश और असम समझौते के तहत की गई है।
सीएए यानी नागरिकता संशोधन कानून
भारतीय नागरिकता कानून 1955 में लागू हुआ था, जिसमें बताया गया है कि किसी विदेशी नागरिक को किन शर्तों के आधार पर भारत की नागरिकता दी जाएगी। इस कानून में हाल ही में संशोधन किया गया। इसके बाद इसका नाम बदलकर सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानी सीएए हो गया। इसमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आने वाले हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध और ईसाई धर्म के शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इन तीन देशों से आने वाले इन 6 धर्मों के शरणार्थियों को भारतीय नागरिक बनने के लिए 11 साल की जगह 5 साल रहना जरूरी होगा।
राज्य विरोध पर अड़े रहें तो अनुच्छेद 356 के तहत केंद्र सरकार राज्य सरकारों को बर्खास्त कर सकती है
- इस बारे में संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि संविधान के अनुच्छेद 11 के तहत नागरिकता पर कानून बनाना पूरी तरह से संसद के कार्यक्षेत्र व अधिकार क्षेत्र में आता है। राज्यों को इस मामले में कोई अधिकार नहीं है। अगर ये इसे अपने यहां लागू नहीं करते हैं तो यह संविधान का उल्लंघन होगा।
- कश्यप के मुताबिक, राज्यों के पास दो विकल्प हैं। वे इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं या अगले लोकसभा चुनाव में बहुमत मिलने पर कानून बदल सकते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट कहती है कि एनआरसी संविधान का उल्लंघन है तो फिर यह कहीं पर भी लागू नहीं होगा। लेकिन अगर यह संविधान का उल्लंघन नहीं माना गया तो सभी राज्यों को इसे अपने यहां लागू करना होगा।
- संविधान विशेषज्ञ और राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण के अनुसार एनआरसी केंद्रीय सूची में है। केंद्र का फैसला लागू करना राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है। कोई राज्य इसे लागू करने से इनकार करे ताे केंद्र कह सकता है कि वहां संवैधानिक व्यवस्था चरमरा गई। ऐसे में अनुच्छेद 355 के तहत राज्य को चेतावनी दी जा सकती है और अनुच्छेद 356 के तहत सरकार बर्खास्त भी की जा सकती है।
- उत्तरप्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह कहते हैं कि केंद्र का काेई भी फैसला, जिस पर अमल राज्य की जिम्मेदारी हाे, उसे व्यावहारिक ढंग से तभी लागू कर सकते हैं, जब राज्य सहमत हो। एनआरसी भी जनगणना और आधार जैसी व्यवस्था है। प्रभावी क्रियान्वयन के लिए इसमें केंद्र और राज्यों के बीच 100% तालमेल जरूरी है।